ये जिंदगी का साज है जो कल था वो ना आज है
खुशी के मौके आएंगे तुझे चीख कर बुलाएंगे
फिर क्यों निराश है तू क्यों निराश है
तू यूं ना बैठ हार कर तू लक्ष्य पर प्रहार कर
दिन वह भी एक आएगा अवसर तुझे बुलाएगा
फिर क्यों निराश है तू क्यों निराश है
तू बांट खुशियां औरों को वह काम तेरे आएंगे
जब होगा तू उदास तो मिलकर तुझे हंसाएंगे
फिर क्यों निराश है तू क्यों निराश है
जो आज है वो कल न था गम का भी कोई पल न था
थीं पास खुशियां ढेर सी सबका दुलार था सब का ही प्यार था
फिर क्यों निराश है तू क्यों निराश है
मेहनत से मुंह ना मोड़ तू यूं धैर्य को न छोड़ तू
मिली न गर जो जीत तो उठ उठ के फिर से दौड़ तू
फिर क्यों निराश है तू क्यों निराश है
निराशा को हरा दे तू निशा को भी भाग दे तू
तू ठान ले कि जीतेगा दे जन्म नई आशा को
फिर क्यों निराश है तू क्यों निराश है
यह विश्व एक मेला है जीता वही जो खेला है
शिखर तो वही पायेगा जो हार से टकराएगा
फिर क्यों निराश है तू क्यों निराश है
तू भाग न संघर्ष से सहर्ष इसे स्वीकार कर
संकट ये भाग जाएंगे हिम्मत जो तू दिखाएगा
फिर क्यों निराश है तू क्यों निराश है
मंजिल मिली सदा उसे कष्ट से जो नहीं डिगा ठोकर लगी कई मगर वह लक्ष्य से नहीं हटा
फिर क्यों निराश है तू क्यों निराश है
-✍️🏻हरीश उप्रेती करन
द्रोण मार्ग देवलचौड़ हल्द्वानी
7500200207