उत्तराखंड @25 : सपनों का सफर और हकीकत का सामना

लंबे जनांदोलन, अनगिनत बलिदानों और अपार उम्मीदों के बाद 9 नवम्बर 2000 को जन्मा उत्तराखंड आज 25 वर्ष का हो चुका है। उत्तराखंड युवा तो हो गया, लेकिन इसे स्वयं के पैरों पर खड़ा होने में अभी वक्त लगेगा। पलायन, कमजोर आर्थिकी, बेरोजगारी, राजनीतिक अस्थिरता जैसी चुनौतियां अब भी राज्य के समक्ष मुंह बाए खड़ी हैं। राज्य निर्माण के समय लोगों को उम्मीद थी कि अपना राज्य अपना प्रशासन होगा तो राज्य और आमजन मानस का तेजी से विकास होगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जिस आशा और विश्वास के साथ राज्य निर्माण हुआ था “अपना राज्य, अपना शासन, अपना विकास” वह सपना अब भी अधूरा है। राज्य बनने के बाद जनता को उम्मीद थी कि पहाड़ का दर्द, पलायन की पीड़ा और उपेक्षा का इतिहास अब बदलेगा। मगर हुआ इसका उल्टा, विकास की गाड़ी नेताओं और अधिकारियों के महलों तक तो पहुंची, पर गांव की पगडंडियों तक नहीं। छोटे से राज्य उत्तराखंड ने 25 वर्षों में 10-10 मुख्यमंत्री की सुख सुविधाओं वेतन भत्तों का बोझ उठाना पड़ रहा है। राज्य में बेरोजगारी चरम पर है, जिसके चलते पहाड़ों से पलायन बढ़ा है। इस वजह से गांव के गांव खाली हो चुके हैं लेकिन नेताओं के पास इस सबसे निपटने का कोई स्पष्ट विजन नहीं है। राजनीतिक अस्थिरता ने विकास की रफ्तार को लगातार थामे रखा। जिस नेतृत्व से दूरदर्शिता और ईमानदारी की उम्मीद थी, वही सत्ता-सुख और पदलोलुपता की दौड़ में आगे निकल गया। आज हालात यह हैं कि जो लोग ग्राम प्रधान बनने की पात्रता भी मुश्किल से रखते थे, वे मंत्री और मुख्यमंत्री बन बैठे। उत्तराखंड की सबसे बड़ी चुनौती है बेरोजगारी और पलायन। सरकारी आंकड़े भले कुछ कहें, पर सच्चाई यह है कि हजारों गांव अब भी वीरान हैं। कभी जिन गांवों में शाम ढलते ही चौपालों में हंसी गूंजती थी, वहां अब ताले और खंडहर हो चुके मकान बचे हैं। सड़कें गांवों तक अब पहुंचीं, जब कि लोग जा चुके थे। यह विडंबना नहीं तो और क्या है? राज्य में भ्रष्टाचार अब कोई छिपी हुई बात नहीं रही। मोटी तनख्वाह पाने वाले अधिकारी और कर्मचारी आए दिन विजिलेंस के जाल में फंस रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि भ्रष्ट पाए गए अफसरों को थोड़े समय बाद फिर से मलाईदार पदों पर बिठा दिया जाता है। वहीं, ईमानदार अधिकारी अक्सर छोटे संस्थानों में वनवास काटते दिखते हैं। राज्य में सड़कों का जाल जरूर बढ़ा है, पर इनकी हालत विकास का नहीं, भ्रष्टाचार का आईना है। अंग्रेजों के जमाने की सड़कें आज भी मजबूती से खड़ी हैं, जबकि नई सड़कें छह महीने भी नहीं टिक पा रहीं। ठेकेदारों, अधिकारियों और नेताओं के लिए सड़कें अब कमाई का जरिया बन चुकी हैं नई सड़क बने तो पैसा, टूटे तो पैचवर्क या पुर्ननिर्माण में फिर पैसा। इन सब निराशाओं के बावजूद उम्मीद की किरण अब भी बाकी है। आज के उत्तराखंड में जागरूकता बढ़ी है। जनता अब सवाल पूछने लगी है, सोशल मीडिया और स्थानीय आंदोलनों ने एक नई चेतना को जन्म दिया है। यह संकेत है कि अगर लोग ठान लें तो व्यवस्था बदली जा सकती है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी योजनाओं ने गांवों को देश से जोड़ा। अब जरूरत है, उसी सोच को आगे बढ़ाने की ईमानदारी, जवाबदेही और पारदर्शिता के साथ। उत्तराखंड के 25 वर्ष जनता के लिए आत्ममंथन का समय हैं। यदि वास्तव में राज्य को खुशहाल बनाना है तो अब बड़ी-बड़ी पार्टियों के झंडे छोड़कर अपने बीच के ईमानदार, कर्मशील और संवेदनशील लोगों को आगे लाना होगा। जब जनता जाति, धर्म और पार्टी से ऊपर उठकर व्यक्ति के चरित्र पर वोट देगी, तभी राज्य का असली विकास संभव होगा। देखा जाए तो आज राज्य के ज्यादातर लोग आम आदमी के बजाय किसी न किसी दल से जुड़े हैं। ऐसे में अगर हमारी पार्टी का नेता गलत भी कर रहा होता है तो हम उसका विरोध करने से परहेज करते हैं। आज जिसे देखो वही अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है। खुद को राज्य का हितैषी बताने वाले लोग राज्य की समस्याओं की अनदेखी कर खुद की स्वार्थ सिद्धि के लिए स्वतंत्रता सेनानियों की तर्ज पर सुविधाएं मांग रहे हैं। जबकि राज्य आंदोलन के दौरान उत्तराखंड का हर नागरिक हर बच्चा आंदोलनकारी था। सुविधाएं और आरक्षण अगर किसी को मिलना चाहिए तो केवल उन लोगों के परिवारों को जो राज्य आंदोलन के दौरान शहीद हुए। ऐसे में उत्तराखंड का यह 25वीं वर्षगांठ केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आत्मविश्लेषण चिंतन और मनन का अवसर है। हमें यह तय करना होगा कि हम आगे भी केवल नेताओं और अफसरों का राज्य बनकर रहेंगे या जनता के राज्य की नींव रखेंगे। जहां हर गांव में रोशनी हो, हर घर में रोजगार हो और हर उत्तराखंडी को अपने पहाड़ पर गर्व से जीने का अवसर मिले।

-हरीश उप्रेती करन

Harish Upreti Karan

पिछले 20 वर्षों से दैनिक जागरण, हिंदुस्तान व अमृत विचार में पत्रकार के रूप में कार्य करने के अलावा चार काव्य संग्रह प्रकाशित, आकाशवाणी रामपुर व अल्मोड़ा से विभिन्न रचनाओं का प्रसारण, हिंदी फिल्म "यंग बाइकर्स" के लिए गीत लेखन, पर्यटन विभाग के लिए बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म "चंपावत एक धरोहर" की स्क्रिप्ट राइटिंग, कुमाऊनी फिल्म "फौजी बाबू", "पधानी लाली", रंगमंच के विभिन्न नाटकों में अभिनय, कुमाऊनी गीत "पहाड़ छोड़ दे" और "काली जींस" का लेखन व गायन, फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई का सदस्य