
शनिवार को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की एक तस्वीर ने सोशल मीडिया पर खासा ध्यान खींचा। तस्वीर में वे एक आम किसान की भांति खेत में हल जोतते नजर आ रहे हैं। यह कोई दिखावा नहीं, बल्कि एक गहरा संदेश है – “हम कितने भी ऊंचे पद पर क्यों न पहुंच जाएं, अपनी जड़ों से जुड़ाव हमें मानवीय बनाता है।”
आज जब समाज में छोटी-छोटी उपलब्धियों पर लोग खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगते हैं, यह तस्वीर हमें याद दिलाती है कि असली महानता पद में नहीं, विनम्रता में है। अक्सर देखा गया है कि जैसे ही किसी को कोई छोटा सा ओहदा मिलता है, चाहे वह प्रशासनिक हो या राजनीतिक, उनके व्यवहार में एक अघोषित घमंड आ जाता है। वे भूल जाते हैं कि यह पद स्थायी नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है, जो सेवा के लिए मिला है, दिखावे के लिए नहीं।
विडंबना यह है कि जो आज पद के नशे में चूर हैं, वही लोग जब सेवानिवृत्त होते हैं, तो फिर उन्हें जमीन की सच्चाई महसूस होती है। तब न कोई सलामी देता है, न ही भीड़ जुटती है। इसलिए जीवन में जब ऊंचाई मिले, तो और झुकना चाहिए — यही बड़े आदमी की असली पहचान है। मुख्यमंत्री की यह तस्वीर सिर्फ एक खेत में काम करने की नहीं, बल्कि एक विचार की है — सेवा, सादगी और सजगता का विचार। यह तस्वीर हमें प्रेरित करती है कि किसी भी पद पर रहते हुए हमें अपनी जमीन, अपनी संस्कृति और अपने व्यवहार को नहीं भूलना चाहिए। वास्तविक नेतृत्व वही है, जो लोगों के बीच रहकर, उनके जैसा बनकर, उनके लिए काम करे। और यही सीख आज के हर अधिकारी, जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार नागरिक को आत्मसात करनी चाहिए। बड़ा बनने का अर्थ यह नहीं कि आप कितनों को झुका सकते हैं, बल्कि यह कि आप कितनी बार खुद झुक सकते हैं — बिना दिखावे के, बिना स्वार्थ के
-हरीश उप्रेती करन, पत्रकार/गीतकार
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