सेवानिवृत्ति के बाद गांव की मिट्टी में रच बस गए आईएएस आरसी पाठक 

गांव में खेती कर लोगों को प्रेरित कर रहे पूर्व आईएएस आरसी पाठक

पूर्व जिलाधिकारी आरसी पाठक

हरीश उप्रेती करन, हल्द्वानी

पिछले दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खेत में पटेला लगाने की तस्वीरें खू्ब वायरल हुईं इसके साथ ही गढ़वाल के एक कर्नल की खेती-बाड़ी की चर्चा भी इन दिनों खूब हो रही है। ऐसे समय में उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में एक ऐसे पूर्व आईएएस अधिकारी का नाम सामने आया है जो कि पिछले 12 वर्षों से चुपचाप अपने गांव की मिट्टी से गहरा रिश्ता निभा रहे हैं। न कोई तामझाम, न कोई प्रचार-प्रसार। बस, एक सादा जीवन और अपनी जड़ों से सच्चा प्रेम।

हम बात कर रहे हैं सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी रमेश चंद्र पाठक की। एक ऐसे अधिकारी, जिन्होंने उत्तराखंड ही नहीं, उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक गलियारों में भी अपनी ईमानदार छवि और सशक्त कार्यशैली से एक अलग पहचान बनाई। इस अधिकारी ने रिटायरमेंट के बाद वो रास्ता नहीं चुना जो अक्सर नौकरशाह अपनाते हैं। उन्होंने महानगरों में बसने के बजाय अपने छोटे से गांव मल्ला डौणू, तहसील बेरीनाग, जिला पिथौरागढ़ लौटने का निर्णय लिया।

एक किसान का बेटा, एक किसान की तरह जीवन

15 जून 1953 को एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे रमेश पाठक बताते हैं कि उनका स्कूल एक छानी (झोपड़ी) में चलता था। सड़कें नहीं थीं, बिजली की कोई कल्पना नहीं। बावजूद उनके किसान पिता ईश्वरी दत्त पाठक ने उन्हें पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कुशाग्र बुद्धि के आरसी पाठक ने महज 5 वर्ष की उम्र में सीधे कक्षा 3 में दाखिला लिया। 13 वर्ष की आयु में हाई स्कूल की परीक्षा पास करने वाला यह बालक आगे चलकर उस ऊंचाई तक पहुंचा, जहां पहुंचना अधिकतर लोगों के लिए केवल सपना होता है।

जमीन गिरवी रखकर पढ़ाई, और फिर आईएएस बनने तक की यात्रा

इंटर तक की पढ़ाई स्कॉलरशिप और ‘पुअर बॉयज फंड’ से हुई, आर्थिक स्थित अच्छी नहीं थी इसलिए आगे की पढ़ाई को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि कैसे होगा लेकिन पिता ईश्वरी दत्त पाठक ने हार नहीं मानी और अपनी जमीन गिरवी रखकर बेटे को बीएससी की पढ़ाई के लिए अल्मोड़ा भेज दिया। होनहार आरसी पाठक ने महज 17 साल की उम्र में पांखू स्कूल में गणित और विज्ञान पढ़ाना शुरू कर दिया। इसके बाद अनट्रेंड शिक्षक के रूप में एक वर्ष तक शामा स्कूल में सेवा दी। फिर लखनऊ से एलटी डिप्लोमा किया और दोबारा से सामा स्कूल में स्थायी शिक्षक के रूप में अध्यापन करने लगे। आरसी पाठक बताते हैं कि 1974 में बागेश्वर में बैंक से वेतन निकालते समय एक अखबार में यूपीपीसीएस का विज्ञापन देखा और बिना ज्यादा जानकारी के फॉर्म भर दिया। लेकिन तब उन्हें यह भी पता नहीं था कि डिप्टी कलेक्टर क्या होता है। बिना किसी तैयारी के पहले प्रयास में ही प्री और रिटर्न निकाल लिया। लेकिन इस परीक्षा में पूर्ण रूप से सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने इसे गंभीरता से लेते हुए पढ़ाने के साथ खुद भी पढ़ना शुरू कर दिया और 1977 में डिप्टी कलेक्टर पद पर उनका चयन हुआ और उसके बाद तो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गांव के वह पहले बड़े अधिकारी थे। वह गणित,खगोल व ज्योतिष के अच्छे जानकार हैं। आज भी कई शोधार्थी उनसे सलाह लेने उनके पास पहुंचते हैँ।

संवेदनशील जिम्मेदारियां और निष्कलंक सेवा

रमेश पाठक ने बागेश्वर, नैनीताल, बुलंदशहर, पंतनगर, पीलीभीत, बरेली जैसे कई महत्वपूर्ण जिलों में एसडीएम, एडीएम और नगर आयुक्त जैसे जिम्मेदार पदों पर सेवा दी। उत्तराखंड बनने के बाद वह राज्य के पहले लेबर कमिश्नर बने। उन्होंने गन्ना आयुक्त, डीएम चंपावत, समाज कल्याण निदेशक, सचिव, परिवहन आयुक्त जैसी कई भूमिकाओं में उत्कृष्ट कार्य किया। रामजन्मभूमि विवाद के तनावपूर्ण समय में, पीलीभीत में उग्रवाद के दौर में, उन्होंने प्रशासनिक सूझबूझ और संवेदनशीलता से स्थिति को संभाला।

2013 में रिटायरमेंट के बाद रमेश पाठक सीधे अपने गांव लौट आए और खेती करने लगे। वर्तमान में भी उन्होंने अपने खेतों में धान, उड़द, भट्ट जैसी फसलें बोई हैं। उनकी बेटी बेटी हिमानी पाठक जुयाल वर्तमान में संयुक्त गन्ना आयुक्त हैं।

गांव का कायाकल्प और प्रेरणा का स्रोत

सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमता व अनुभव का उपयोग गांव के विकास में भी किया। गांव में सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए भरसक प्रयास किए। आज गांव में शहर जैसी कई सुविधाएं उपलब्ध हैं। शादी-ब्याह हो या कोई दुःख-सुख, रमेश पाठक हर आयोजन में न केवल शामिल होते हैं बल्कि आयोजन की रीढ़ बनते हैं। उनका मानना है कि पलायन रोकने का सबसे सशक्त उपाय है – महिलाओं और बेटियों को खेती-बाड़ी से जोड़ना और गांव के प्रति गर्व की भावना पैदा करना। वह कहते हैं, “अगर एक आईएएस अधिकारी अपने खेत में काम कर सकता है तो बाकी क्यों नहीं?”

एक गीत, जो कचोटता है

रमेश पाठक एक पुराने पहाड़ी गीत—“निर्मोही बोज्यूले पहाड़ विवायूं निर्दयी इजुले” को सुनाते हुए कहते हैं कि इस प्रवृत्ति को अब बदलना होगा। “पलायन तब तक नहीं रुकेगा, जब तक हम युवाओं और महिलाओं को गांव से जोड़ने के ठोस प्रयास नहीं करेंगे।” कहते हैं कि आज बेटा सिडकुल या अन्य किसी नौकरी में लगा नहीं बहुएं बच्चों की पढ़ाई के नाम पर साथ जाने की जिद करने लगती हैं। वह कहते हैं कि उन जैसे न जाने कितने लोगों ने गांव में पढ़ाई कर उच्च पद हासिल किए और आज भी कर रहे हैं। वह आज भी युवा पीढ़ी को यही संदेश देते हैं कि “समय सबसे बड़ा धन है। इसे गवाएं नहीं। मेहनत, सादगी और आत्मसंस्कार ही जीवन को सार्थक बनाते हैं।” अपना आहार, विहार, विचार व संस्कार अच्छा रखें जीवन आनंदमय रहेगा। रमेश पाठक केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रेरणा हैं—जिन्होंने दिखाया कि ऊंचे पद पर पहुंचने के बावजूद अपनी अपनी मिट्टी से जुड़े रहना व्यक्ति का कद और ऊंचा करता है। उनकी कहानी हर उस व्यक्ति के लिए एक संदेश है, जो सोचता है कि गांव में कुछ नहीं रखा। दरअसल, गांव ही वो जगह है, जहां आत्मा सुकून पाती है। आरसी पाठक आज गांव के युवाओं के साथ-साथ गांव में रहने के बावजूद खेती से दूर रहने वाले लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।

Harish Upreti Karan

पिछले 20 वर्षों से दैनिक जागरण, हिंदुस्तान व अमृत विचार में पत्रकार के रूप में कार्य करने के अलावा चार काव्य संग्रह प्रकाशित, आकाशवाणी रामपुर व अल्मोड़ा से विभिन्न रचनाओं का प्रसारण, हिंदी फिल्म "यंग बाइकर्स" के लिए गीत लेखन, पर्यटन विभाग के लिए बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म "चंपावत एक धरोहर" की स्क्रिप्ट राइटिंग, कुमाऊनी फिल्म "फौजी बाबू", "पधानी लाली", रंगमंच के विभिन्न नाटकों में अभिनय, कुमाऊनी गीत "पहाड़ छोड़ दे" और "काली जींस" का लेखन व गायन, फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई का सदस्य

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