
पिता क्या थे मेरे खातिर ,
मैं अक्सर भूल जाता हूँ |
मगर जब खुद पिता मैं हूँ,
खुदा उन्हें मैं पाता हूँ ||
मुझे लगता मेरी खातिर,
पिता कुछ कर नही पाए|
मगर जब खुद पिता मैं हूँ,
लगा जहां मुझपे लुटाया था||
✍️🏻हरीश उप्रेती “करन”

पिता क्या थे मेरे खातिर ,
मैं अक्सर भूल जाता हूँ |
मगर जब खुद पिता मैं हूँ,
खुदा उन्हें मैं पाता हूँ ||
मुझे लगता मेरी खातिर,
पिता कुछ कर नही पाए|
मगर जब खुद पिता मैं हूँ,
लगा जहां मुझपे लुटाया था||
✍️🏻हरीश उप्रेती “करन”