श्रद्धालु नहीं, सिस्टम की जिम्मेदारी है जीवन की रक्षा

उत्तराखंड में हेलीकॉप्टर हादसे

उत्तराखंड में चारधाम यात्रा का आरंभ हर वर्ष एक गहरी श्रद्धा और उम्मीद के साथ होता है। लेकिन 2025 की यात्रा, विशेष रूप से केदारनाथ धाम, भयावह हादसों की छाया में घिरती जा रही है। अभी तक मंदिर के कपाट खुलने के महज चालीस दिनों के भीतर पाँच हेलीकॉप्टर हादसे हो चुके हैं—कुछ में लोग बाल-बाल बचे, तो कुछ ने अपनों को खो दिया। 15 जून को आर्यन एविएशन का हेलीकॉप्टर जंगल में भटककर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें सात लोगों की दर्दनाक मौत हुई। इससे पहले भी 8 मई को उत्तरकाशी में हुई दुर्घटना में छह जानें गईं। यह सिलसिला रुक नहीं रहा। प्रश्न यह है कि क्या ये हादसे केवल ‘तकनीकी खराबियों’ और ‘प्राकृतिक परिस्थितियों’ का परिणाम हैं, या इनसे कहीं गहरे और चिंताजनक कारण जुड़े हैं? उत्तराखंड की पर्वतीय यात्रा पहले से ही जोखिमों से भरी रही है, लेकिन जब आकाशीय मार्ग को भी उतना ही असुरक्षित और अव्यवस्थित बना दिया जाए, तो यह स्पष्ट संकेत है कि योजना और जवाबदेही की परतें कहीं न कहीं दरक चुकी हैं।

हेली सेवाओं का तीर्थयात्रा में उपयोग, वृद्ध और बीमार यात्रियों के लिए एक राहत बनकर शुरू हुआ था। लेकिन अब यह सुविधा एक बिना नियंत्रण के व्यावसायिक प्रतियोगिता में बदलती दिख रही है। हैलीकॉप्टर कंपनियों पर सुरक्षा मानकों के पालन का क्या असर है? नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) और राज्य प्रशासन की निगरानी क्या केवल कागजों पर है? हादसों के बाद महज जांच बैठा देना और मृतकों को मुआवजा देकर कर्तव्यों की इतिश्री मान लेना, इस संवेदनहीन व्यवस्था की कलई खोल देता है।

सवाल सिर्फ हादसों का नहीं है—सवाल यह है कि क्या हमने श्रद्धा को व्यवसाय का माध्यम बना दिया है? क्या हमारी नीतियां तीर्थ को ‘ट्रैफिक जोन’ में बदलने में लगी हैं, जहाँ सुरक्षा एक अनुपस्थित चिंता बनकर रह गई है? पायलटों पर दबाव, उड़ानों की अनियमितता, रखरखाव में लापरवाही और मौसम की अनदेखी—इन सबने मिलकर एक ऐसा त्रासद वातावरण रच दिया है, जहाँ यात्रा अब आस्था की नहीं, डर की हो चली है।

जब कोई श्रद्धालु केदारनाथ या गंगोत्री की ओर हेली सेवा से निकलता है, तो उसका भरोसा केवल भगवान पर नहीं, उस सिस्टम पर भी होता है जो उसे सुरक्षित पहुंचाने का वादा करता है। यह भरोसा हर दुर्घटना के साथ दरकता जा रहा है।

यह आवश्यक हो गया है कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिलकर तत्काल एक व्यापक सुरक्षा समीक्षा करें। हेली सेवाओं के लाइसेंस को पुनः परखा जाए, मौसम निगरानी व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए, पायलट प्रशिक्षण, उड़ानों की संख्या और समय का पुनः निर्धारण हो। हेलीकॉप्टर संचालन के हर पहलू में पारदर्शिता और जवाबदेही तय हो।

श्रद्धा और व्यवस्था का रिश्ता अलग नहीं है। जो व्यवस्था भगवान के घर तक ले जाती है, वही व्यवस्था जिम्मेदार होनी चाहिए कि कोई उस रास्ते में न मरे।

हम यह नहीं कह सकते कि हादसे पूरी तरह रोके जा सकते हैं, लेकिन उन्हें टाला जरूर जा सकता है—अगर नियोजन सही हो, नीयत साफ हो और जवाबदेही तय हो। वरना हर वर्ष यात्रा सीजन एक आंकड़ा बनकर रह जाएगा—कितने गए, कितने लौटे और कितने रास्ते में छूट गए। इसलिए अब वक़्त है यह कहने का: श्रद्धा की यह यात्रा, भगवान के भरोसे नहीं, सिस्टम की जिम्मेदारी पर होनी चाहिए।

✍️हरीश उप्रेती करन, संपादक

खबरों की दुनिया, हल्द्वानी (उत्तराखंड)

 

 

 

Harish Upreti Karan

पिछले 20 वर्षों से दैनिक जागरण, हिंदुस्तान व अमृत विचार में पत्रकार के रूप में कार्य करने के अलावा चार काव्य संग्रह प्रकाशित, आकाशवाणी रामपुर व अल्मोड़ा से विभिन्न रचनाओं का प्रसारण, हिंदी फिल्म "यंग बाइकर्स" के लिए गीत लेखन, पर्यटन विभाग के लिए बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म "चंपावत एक धरोहर" की स्क्रिप्ट राइटिंग, कुमाऊनी फिल्म "फौजी बाबू", "पधानी लाली", रंगमंच के विभिन्न नाटकों में अभिनय, कुमाऊनी गीत "पहाड़ छोड़ दे" और "काली जींस" का लेखन व गायन, फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई का सदस्य