
भारतीय टेलीविजन और सिनेमा जगत के एक युग का दुखद अंत हो गया है। अपने हास्य और अनूठे अभिनय से दर्शकों के दिलों में जगह बनाने वाले दिग्गज अभिनेता सतीश शाह का 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। शनिवार, 25 अक्टूबर 2025 को किडनी फेल होने के कारण उन्होंने अंतिम सांस ली। गुजराती मूल के इस कलाकार ने अपनी चुलबुली शैली और ज़बरदस्त कॉमिक टाइमिंग से मनोरंजन की दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ी है, जिसे भुलाना नामुमकिन है।
सतीश शाह का चार दशकों से अधिक का करियर फिल्मों और टेलीविजन दोनों में उनकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण है। उन्होंने लगभग 250 से अधिक फिल्मों में काम किया, जिनमें से कई में उनके छोटे लेकिन यादगार किरदारों ने कहानी में जान डाल दी। 1983 की व्यंग्यात्मक फिल्म ‘जाने भी दो यारों’ में उनके कई किरदार, खासकर मृत शरीर वाला, आज भी कल्ट क्लासिक माने जाते हैं। इसके अलावा, उन्होंने ‘मैं हूं ना’, ‘कल हो ना हो’, ‘फना’ और ‘ओम शांति ओम’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों में भी अपने अभिनय का जादू बिखेरा। लेकिन, सतीश शाह को घर-घर में जो पहचान और प्यार मिला, वह टेलीविजन से मिला। वह 1984 के लोकप्रिय सिटकॉम ‘ये जो है ज़िंदगी’ में 55 से अधिक अलग-अलग किरदार निभाकर एक रिकॉर्ड बनाने के लिए जाने जाते हैं। यह उनकी अद्भुत क्षमता को दर्शाता है कि वह हर रोल में खुद को पूरी तरह ढाल लेते थे। हालांकि, उनके करियर का सबसे यादगार अध्याय निस्संदेह कॉमेडी शो ‘साराभाई वर्सेज साराभाई’ का ‘इंद्रवदन साराभाई’ का किरदार रहा। एक सनकी, मज़ाकिया और व्यंग्य से भरपूर पिता के रूप में उन्होंने अपनी पत्नी ‘माया’ और बेटे ‘मोनिशा’ के बीच लगातार हंसी-मज़ाक के पुल बांधे। उनका ‘ओहो.. मोनिशा’ कहने का अंदाज़, और ‘रोसेश’ की कविताओं पर उनकी प्रतिक्रियाएं आज भी सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं। यह किरदार उनकी विरासत का पर्याय बन गया है। सतीश शाह केवल एक हास्य अभिनेता नहीं थे, बल्कि एक परिपक्व कलाकार थे जिन्होंने गंभीर भूमिकाओं को भी उतनी ही सहजता से निभाया। उनके चेहरे के भाव, संवाद अदायगी और शारीरिक हाव-भाव पर उनका नियंत्रण कमाल का था। वह अपनी कला के प्रति समर्पित थे और उनकी स्क्रीन उपस्थिति में एक सहजता थी जो दर्शकों को तुरंत उनसे जोड़ देती थी। उनका निधन भारतीय कला जगत के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। सतीश शाह ने अपनी हास्य कला से लाखों चेहरों पर मुस्कान लाई। उनकी यादें उनके अनमोल किरदारों के रूप में भारतीय मनोरंजन के इतिहास में हमेशा ज़िंदा रहेंगी। उनके जाने से एक खालीपन आ गया है, जिसे भरना मुश्किल है।
विनम्र श्रद्धांजलि!
-हरीश उप्रेती करन



