
खबरों की दुनिया, हल्द्वानी/ नैनीताल
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कुमाऊं विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित करते हुए ‘संविधान हत्या दिवस’ के महत्व को रेखांकित किया।
उन्होंने विशेष रूप से युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि, युवाओं को इस पर चिंतन करना चाहिए क्योंकि जब तक वे इसके बारे में जानेंगे नहीं, समझेंगे नहीं। क्या हुआ था प्रेस के साथ? किन लोगों को जेल में डाला गया? वे बाद में इस देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बने। यही कारण है कि युवाओं को जागरूक बनाना ज़रूरी है। कहा कि, आप लोकतंत्र और शासन व्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण भागीदार हैं। आप इस बात को भूल नहीं सकते और न ही इस अंधकारमय कालखंड से अनभिज्ञ रह सकते हैं। बहुत सोच-समझकर, आज की सरकार ने तय किया कि इस दिन को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। यह एक ऐसा उत्सव होगा जो सुनिश्चित करेगा कि ऐसा फिर कभी न हो। उपराष्ट्रपति ने कहा कि, यह उन दोषियों की पहचान का भी अवसर होगा जिन्होंने मानवीय अधिकारों, संविधान की आत्मा और भाव को कुचला। वे कौन थे? उन्होंने ऐसा क्यों किया? और सर्वोच्च न्यायालय में भी, मेरे मित्र सहमत होंगे, एक न्यायाधीश एचआर खन्ना ने असहमति जताई थी और अमेरिका के एक प्रमुख समाचार पत्र ने टिप्पणी की थी कि जब भारत में फिर से लोकतंत्र लौटेगा तो एचआर खन्ना के लिए अवश्य एक स्मारक बनेगा जिन्होंने अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पूर्व छात्रों और उनके योगदान के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि पिछले 50 वर्षों में आपके पास बड़ी संख्या में पूर्व छात्र हैं। किसी संस्थान के पूर्व छात्र उसके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण घटक होते हैं। आप सोशल मीडिया या गूगल पर देखिए, कई विकसित देशों के संस्थानों के पास 10 अरब डॉलर से अधिक का पूर्व छात्र फंड है। किसी के पास तो 50 अरब डॉलर से अधिक का भी है। यह कोई एक बार में नहीं आता, यह बूंद-बूंद से जमा होता है। मैं उदाहरण दूं कि यदि इस महान संस्थान के 1,00,000 पूर्व छात्र हर साल केवल 10,000 रुपये का योगदान करें, तो सालाना राशि 100 करोड़ रुपये होगी और सोचिए, अगर यह हर साल होता रहे, तो आपको कहीं और देखने की आवश्यकता नहीं होगी। आप आत्मनिर्भर होंगे। यह आपको संतोष देगा। साथ ही, पूर्व छात्र अपने अल्मा मेटर से जुड़ सकेंगे। वे आपको मार्गदर्शन देंगे, वो आपको संभालेंगे इसलिए मैं आग्रह करता हूं कि देवभूमि से पूर्व छात्र संघ की शुरुआत हो। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने परिसर आधारित शिक्षा की भूमिका पर ज़ोर देते हुए कहा कि शैक्षणिक संस्थान केवल डिग्रियां या प्रमाणपत्र प्राप्त करने के स्थान नहीं हैं, अन्यथा वर्चुअल लर्निंग और परिसर आधारित लर्निंग में अंतर क्यों होता? आप जानते हैं, आपके साथियों के साथ बिताया गया समय आपके सोचने के तरीके को परिभाषित करता है। ये स्थान वह परिवर्तन उत्पन्न करने के लिए हैं जिसकी आवश्यकता है, जो परिवर्तन आप चाहते हैं, जो राष्ट्र आप चाहते हैं। ये विचार और नवाचार के स्वाभाविक जैविक स्थल हैं। उन्होंने कहा कि, विचार आते हैं, लेकिन विचारों पर विचार होना भी ज़रूरी है। अगर कोई विचार असफलता के डर से आता है, तो आप उसमें नवाचार या प्रयोग नहीं करते। तब हमारी प्रगति रुक जाती है। ये वे स्थान हैं जहां दुनिया हमारे युवाओं से ईर्ष्या करती है। उनके पास न केवल अपना भविष्य गढ़ने का अवसर है, बल्कि भारत की नियति गढ़ने का भी और इसलिए, कृपया आगे बढ़िए। उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि, एक कॉर्पोरेट उत्पाद की टैगलाइन है जिसे आप जानते होंगे- जस्ट डू इट। क्या मैं सही हूं? मैं उसमें एक और जोड़ना चाहूंगा-डू इट ना (अभी करो)। वहीं राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने कुमाऊं विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षकों की भूमिका राष्ट्र निर्माण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वे केवल ज्ञान नहीं देते, बल्कि व्यक्तित्व गढ़ते हैं, नेतृत्व को जन्म देते हैं और विचारों में संस्कारों का सिंचन करते हैं। शिक्षकों का कार्य केवल पाठ्यक्रम की पूर्ति तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें शोध और अध्यापन दोनों में दक्ष होना चाहिए, तकनीक का समुचित उपयोग करना चाहिए, विद्यार्थियों को मूल्य आधारित विचारधारा से जोड़ना चाहिए और उनमें ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना उत्पन्न करनी चाहिए। इस मौके पर उच्च शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत, विधायक नैनीताल सरिता आर्या, भीमताल राम सिंह कैड़ा, पूर्व सांसद डा महेन्द्र पाल, आयुक्त कुमाऊ मंडल दीपक रावत, पुलिस महानिरीक्षक रिद्धिम अग्रवाल, जिलाधिकारी वंदना, कुलपति कुमाऊं विश्वविद्यालय दीवान सिंह रावत, उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर ओ पी एस नेगी, जी बी पंत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ मनमोहन सिंह चौहान सहित अन्य भी उपस्थित रहे।


